व्यवसाय विचार

शहरी बसों को इलेक्ट्रिफाई करने के प्रमुख पहलू

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk Sep 17, 2024 - 7 min read
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इलेक्ट्रिक बसों को शामिल करने का पहला कदम यह देखना होता है कि हर मार्ग पर कितनी ऊर्जा की जरूरत होगी। बस की ऊर्जा खपत इस बात पर निर्भर करती है कि रास्ता कितना लंबा है, उसमें कितनी चढ़ाई-उतराई है, ट्रैफिक कैसा रहता है, और बस कितनी बार रुकती है। इन सब चीजों का ध्यान रखने से यह तय करने में मदद मिलती है कि कौन सा इलेक्ट्रिक बस मॉडल सही रहेगा।

शहरी परिवहन में इलेक्ट्रिक बसों का उपयोग न केवल ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देता है बल्कि यह पर्यावरणीय प्रदूषण को भी कम करता है। डीजल या सीएनजी बसों की जगह इलेक्ट्रिक बसों को शामिल करने के लिए एक समग्र योजना और अनुकूलन दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। यह लेख शहरी बसों को इलेक्ट्रिफाई करने की योजना और अनुकूलन के प्रमुख पहलुओं पर एक गहरी नजर डालता है।

1. बस फ्लीट और मार्ग आवश्यकताओं का आकलन

मार्ग ऊर्जा मांग:  इलेक्ट्रिक बसों को शामिल करने का पहला कदम यह देखना होता है कि हर मार्ग पर कितनी ऊर्जा की जरूरत होगी। बस की ऊर्जा खपत इस बात पर निर्भर करती है कि रास्ता कितना लंबा है, उसमें कितनी चढ़ाई-उतराई है, ट्रैफिक कैसा रहता है, और बस कितनी बार रुकती है। इन सब चीजों का ध्यान रखने से यह तय करने में मदद मिलती है कि कौन सा इलेक्ट्रिक बस मॉडल सही रहेगा, जिसमें बैटरी की रेंज और क्षमता पर्याप्त हो ताकि बस आसानी से चल सके।

बस फ्लीट का आकार और बदलने की योजना: शहरों को यह तय करना होगा कि वे अपने डीजल बसों को धीरे-धीरे बदलें या एक बार में पूरी फ्लीट का नवीनीकरण करें। इसके साथ ही, चार्जिंग समय और बस फ्लीट के आकार का अनुकूलन आवश्यक है ताकि बस सेवाओं में कोई रुकावट न हो। इलेक्ट्रिक बसों को धीरे-धीरे मौजूदा बेड़े में शामिल करना एक व्यावहारिक विकल्प हो सकता है, खासकर जब बजट सीमित हो। इसके तहत, हर साल कुछ डीजल बसों को इलेक्ट्रिक बसों से बदला जाता है, जिससे वित्तीय भार कम हो जाता है और शहरी परिवहन प्रणाली में अचानक कोई बड़ा बदलाव नहीं आता। कुछ शहरों में, जहां पर्यावरणीय मानकों को तेजी से पूरा करना है या जहां नीतियों द्वारा शुद्ध शून्य उत्सर्जन की समय सीमा निर्धारित की गई है, वहां पूरा बेड़ा एक बार में बदला जा सकता है। हालांकि, यह एक बड़ी निवेश की मांग करता है, लेकिन इससे इलेक्ट्रिक बस प्रणाली को जल्दी और प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।

जीआईजेड इंडिया  के लीड-इलेक्ट्रिक मोबिलिटी अमेघ गोपीनाथ ने कहा इलेक्ट्रिक बसों के क्षेत्र में हम भारी उद्योग मंत्रालय और सूरत शहर के साथ काम कर रहे हैं। हाल ही में शुरू की गई इलेक्ट्रिक बस योजना और 2030 तक 50,000 इलेक्ट्रिक बसों के लक्ष्य के तहत, हम कॉन्ट्रैक्ट, योजना और शेड्यूलिंग तथा तैनाती पर काम कर रहे हैं। हम सूरत के लिए एक योजना तैयार कर रहे हैं और हम CSL, ASRTU, MOHUA और MHI के साथ योजना और नीति स्तर पर काम कर रहे हैं। पहले ध्यान शहरी क्षेत्रों पर था, अब अंतर-शहरी और अंतर-राज्यीय परिवहन पर है। लंबी यात्राओं, अंतर-राज्यीय और अंतर-शहरी यात्रा के लिए इलेक्ट्रिक बसों का बदलाव होना आवश्यक है। इस पर भी काम चल रहा है।

2.चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर

चार्जिंग के प्रकार: इलेक्ट्रिक बसों को चार्ज करने के लिए डिपो चार्जिंग (रात में चार्जिंग) और अवसर चार्जिंग (बस टर्मिनलों या स्टेशनों पर तीव्र चार्जिंग) का उपयोग किया जा सकता है। किस प्रकार की चार्जिंग का उपयोग करना है, यह मार्ग की आवश्यकता, बस के शेड्यूल, और ग्रिड क्षमता पर निर्भर करती है।

चार्जिंग स्थान और ग्रिड प्रभाव: चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को स्थापित करना एक महत्वपूर्ण कदम है। डिपो-आधारित चार्जिंग स्टेशनों को बस डिपो में स्थापित किया जा सकता है, जबकि अवसर चार्जिंग स्टेशनों को मार्ग के मुख्य बिंदुओं पर स्थापित करना चाहिए। बिजली सप्लाई के साथ समन्वय करके यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि चार्जिंग ग्रिड ओवरलोड न हो और चार्जिंग समय पीक ऊर्जा मांग के दौरान न हो।

चार्जर उपयोग का अनुकूलन: यह सुनिश्चित करना कि चार्जर का सही समय पर और प्रभावी उपयोग हो। स्मार्ट चार्जिंग मैनेजमेंट सिस्टम चार्जिंग के समय को ऊर्जा टैरिफ, वाहन की उपलब्धता, और समग्र मांग के आधार पर अनुकूलित कर सकती हैं।

3.एनर्जी मैनेजमेंट और बैटरी ऑप्टिमाइजेशन

बैटरी आकार और गिरावट: इलेक्ट्रिक बसों में विभिन्न बैटरी क्षमताएं होती हैं, जो उनकी रेंज को प्रभावित करती हैं। बड़ी बैटरी अधिक रेंज प्रदान करती है, लेकिन इससे बस का वजन और लागत बढ़ जाती है। समय के साथ बैटरी की गिरावट रेंज को कम कर सकती है, इसलिए इसे दीर्घकालिक योजना में शामिल करना आवश्यक है।

रीजेनरेटिव ब्रेकिंग: शहरी बसें रीजेनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम का उपयोग कर सकती हैं, जो बस के ब्रेक लगाते समय काइनेटिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा(इलेक्ट्रिकल एनर्जी) में परिवर्तित करती है। इस प्रणाली का उपयोग ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए विशेष रूप से उन मार्गों पर किया जा सकता है जहां बार-बार स्टॉप होते हैं। 

थर्मल मैनेजमेंट: बैटरी का परफॉरमेंस मौसम के अनुसार बदलता है, खासकर ठंडे वातावरण में। इसलिए, यह जरूरी है कि बसों में प्रभावी थर्मल मैनेजमेंट सिस्टम हो ताकि बैटरी की क्षमता और दीर्घायु को बनाए रखा जा सके।

4. कॉस्ट एनालिसिस और फंडिंग

शुरुआती खर्च बनाम लंबे समय की बचत: इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआती लागत डीजल बसों से अधिक होती है, लेकिन ईंधन की कम लागत और कम रखरखाव के कारण लंबे समय में बचत होती है। इलेक्ट्रिक बसों के लिए वित्तीय मॉडलिंग उपकरण यह आकलन करने में मदद कर सकते हैं कि ऊर्जा मूल्य, रखरखाव (मेंटेनेंस),और बैटरी रिप्लेसमेंट जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए निवेश पर रिटर्न (ROI) कैसा होगा।

सरकारी प्रोत्साहन और फंडिंग: कई सरकारें इलेक्ट्रिक बसों को अपनाने के लिए सब्सिडी, अनुदान, या कम ब्याज दरों वाले ऋण(लोन) देती हैं। इसका मतलब है कि सरकार आपको पैसे देती है या पैसे उधार देने पर कम ब्याज लेती है। इनकी मदद से आप इलेक्ट्रिक बसों और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की शुरुआत में होने वाली बड़ी लागत को कम कर सकते हैं। इससे इलेक्ट्रिक बसों को खरीदना और चलाना सस्ता हो जाता है।

5. स्थिरता और पर्यावरणीय प्रभाव

उत्सर्जन में कमी: इलेक्ट्रिक बसें, खासकर उन शहरों में जो सौर या पवन ऊर्जा जैसी अक्षय ऊर्जा का उपयोग करती हैं, वायु में ग्रीनहाउस गैसों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड) को कम करने में मदद करती हैं। इससे शहरों को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में और वायु की गुणवत्ता(क्वालिटी) सुधारने में मदद मिलती है। यह एक जरूरी कदम है ताकि हमारे वातावरण को साफ और स्वस्थ बनाया जा सके।

लाइफ साइकिल एनालिसिस (LCA): इलेक्ट्रिक बसों की स्थिरता केवल उनके टेलपाइप उत्सर्जन तक सीमित नहीं है। इसमें निर्माण के दौरान उत्सर्जन, ऊर्जा खपत, और बैटरी के अंत-उपयोग (निपटान या रीसाइक्लिंग) तक के सभी पहलुओं को शामिल किया जाता है।

6. योजना और अनुकूलन के लिए सॉफ़्टवेयर टूल्स

सिमुलेशन और रूट प्लानिंग सॉफ़्टवेयर: उन्नत सॉफ़्टवेयर टूल्स का उपयोग बसों के संचालन के लिए किया जा सकता है। ये उपकरण बस शेड्यूल, चार्जिंग समय, ऊर्जा खपत, और मार्ग की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए ये सॉफ़्टवेयर टूल्स एक अच्छा और प्रभावी योजना तैयार कर सकते हैं ताकि बसों का संचालन सुचारू और कुशल हो।

फ्लीट मैनेजमेंट सिस्टम: एक बार जब इलेक्ट्रिक बसें चालू हो जाती हैं, तो फ्लीट मैनेजमेंट सिस्टम बस के परफॉरमेंस, ऊर्जा खपत, और बैटरी स्वास्थ्य की वास्तविक समय में निगरानी कर सकती है। यह डेटा परिचालन समस्याओं को हल करने और निरंतर अनुकूलन में मदद करता है। 

7.चुनौतियाँ और भविष्य के विचार

रेंज की चिंता और परिचालन व्यवधान: इलेक्ट्रिक बसों की रेंज सीमित हो सकती है, खासकर लंबे मार्गों पर। इसके लिए बस शेड्यूल और मार्गों में कुछ बदलाव की आवश्यकता हो सकती है ताकि चार्जिंग समय को समायोजित किया जा सके।

टेक्नोलॉजी विकास: बैटरी टेक्नोलॉजी तेजी से बदल रही है। नई बैटरी टेक्नोलॉजी आने के साथ ज्यादा ऊर्जा स्टोर करने और जल्दी चार्ज होने की सुविधाएं मिल सकती हैं।इसलिए, जब आप बसों की योजना बनाते हैं, तो आपको लचीलापन रखना चाहिए। इसका मतलब है कि आप भविष्य में आने वाली नई तकनीकों को आसानी से शामिल कर सकें और अपनी योजना को अपडेट कर सकें।

स्वचालित(ऑटोनोमस) इलेक्ट्रिक बसें: भविष्य में इलेक्ट्रिफिकेशन और स्वचालन का संगम देखने को मिल सकता है। ऑटोनोमस इलेक्ट्रिक बस रूट, ऊर्जा उपयोग, और शेड्यूल को और अधिक अनुकूलित कर सकती हैं।

निष्कर्ष

शहरी बसों का इलेक्ट्रिफिकेशन सार्वजनिक परिवहन को स्थायी और कुशल बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए मार्ग की मांग, फ्लीट का आकार, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी मैनेजमेंट और लागत जैसी विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। योजनाकारों को नई टेक्नोलॉजी और स्मार्ट समाधानों के साथ इन सभी कारकों का समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा ताकि इलेक्ट्रिक बसों का पूर्ण लाभ उठाया जा सके और परिचालन रुकावटों को कम किया जा सके।

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