व्यवसाय विचार

स्कूल फीस पेमेंट स्टार्टअप ज़ेंडा ने लगभग 70.5 करोड़ रुपये जुटाए

Opportunity India Desk
Opportunity India Desk Apr 26, 2022 - 2 min read
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ज़ेंडा की स्थापना जून 2021 में मैकेंजी एंड कंपनी के पूर्व छात्र रमन त्यागराजन और हसीब अहमद ने की थी। इसकी योजना भारत में उत्पाद विकास और बाज़ार के विस्तार के लिए फंड का उपयोग करने की है।

फिनटेक स्टार्टअप ज़ेंडा (पूर्व में नेक्सोपे) ने सऊदी अरब स्थित वेंचर कैपिटल फंड एसटीवी, सीड-स्टेज वेंचर फंड कोटू वेंचर्स, ग्लोबल फाउंडर्स कैपिटल और वेंचरसूक से सीड फंडिंग राउंड में 9.4 मिलियन डॉलर(लगभग 70.5 करोड़ रुपये) जुटाए हैं। स्टार्टअप की योजना भारत में उत्पाद विकास और बाज़ार के विस्तार के लिए फंड का उपयोग करने की है।

ज़ेंडा की स्थापना जून 2021 में मैकेंजी एंड कंपनी के पूर्व छात्र रमन त्यागराजन और हसीब अहमद ने की थी। त्यागराजन और अहमद ने पहले दुबई में एडटेक स्टार्टअप नेक्सस्क्वेयर की स्थापना की थी।

फिनटेक स्टार्टअप परिवारों को पे-नाउ और पे-लेटर विकल्पों के साथ स्कूल फीस को देने में मदद करता है और समय पर पेमेंट करने के लिए रिवार्ड पॉइंट अनलॉक करता है।

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में लॉन्च होने के बाद, ज़ेंडा ने वर्ष 2021 में भारत में परिचालन शुरू किया। अब इसके 40 से ज्यादा कर्मचारी हैं, जिनमें से लगभग 30 भारत में हैं, जो बेंगलुरु, कोच्चि और दिल्ली से बाहर काम कर रहे हैं।

ज़ेंडा के कोफ़ाउंडर त्यागराजन ने बताया की फंड का उपयोग भारत और संयुक्त अरब अमीरात(यूएई) में हमारे बाजारों को विकसित करने के लिए किया जाएगा और साल के अंत तक एक नए बाज़ार की ओर देखना शुरू कर सकते है। हमारी टीम के सदस्य भारत से बाहर हैं और वहा पर टीम को ट्रेंड कर रहे है।

स्टार्टअप ने कहा कि भारत में उसके माध्यम से प्राइवेट एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन को सालाना 70 अरब डॉलर, गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) में 37 अरब डॉलर और मध्य पूर्व व अफ्रीका के बाकी हिस्सों में 34 अरब डॉलर का भुगतान जारी हुआ है।

त्यागराजन ने कहा स्कूलों (नर्सरी, के12 और तृतीयक) में शुल्क भुगतान काफी गैर-डिजिटल है और यहां तक कि डिजिटल बोझिल, मैनुअल और महंगा है। उन्होंने आगे कहा कि हमारा उद्देश्य परिवारों को पैसे का प्रबंधन करने और उनके वित्तीय कल्याण को सक्षम बनाने में मदद करना है और हम ज्यादा से ज्यादा उत्पादों को पेश करेंगे जो इस उद्देश्य की पूर्ती को पूरा कर सके। इसके अलावा, अधिकांश परिवार मासिक कमाते हैं लेकिन शुल्क भुगतान आमतौर पर टर्म या द्वि-वार्षिक होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप माता-पिता के लिए नकदी प्रवाह का दबाव होता है और स्कूलों को क्लेक्शन करने में देरी होती है।

 

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