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- स्टार्टअप शुरू करने से पहले जरूर जान लें बिजनेस से जुड़ी इन खास शब्दावलियों को
स्टार्टअप की दुनिया में इनका है विशेष रुतबा
इन शब्दों को जानकर आसान कर सकते हैं आप अपने व्यवसाय का सफर
स्टार्टअप शुरू करने जा रहे हैं और नहीं जानते हैं कि क्राउड फंडिंग या प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट क्या है? या फिर ओवरहेड चार्ज क्या होता है? तो आप बिल्कुल परेशान न हों। इस आलेख को पूरा पढ़ें, हम यहां ऐसे ही चुनिंदा शब्द आपके लिए लेकर आए हैं, जिनका स्टार्टअप की दुनिया में खासा प्रयोग होता है। साथ ही अगर आपने इन्हें समझ लिया तो आपके लिए व्यवसाय की राहें भी थोड़ी आसान हो जाएंगी।
1.व्यवसाय योजना: यह किसी भी व्यवसाय की पूरी योजना होती है। इसके तहत व्यवसाय कैसे बढ़ेगा? कहां-कहां विस्तार करना है? कहां से कितनी आमदनी होगी? कितना निवेश करना होगा? यह जानकारी प्राप्त होती है।
2. व्यापार मॉडल: इसके तहत यह बताया जाता है कि आमदनी कैसे होगी और कितनी होगी? इसमें स्टार्टअप में खर्च होने वाले एक-एक रूपए का हिसाब-किताब होता है।
3. पिच: यदि कोई आपसे कहे कि आपको अपने स्टार्टअप का आइडिया निवेशकों के सामने प्रस्तुत करना है, तो इस प्रक्रिया को ही पिच करना कहते हैं।
4. इक्विटी: व्यवसाय में हिस्सेदारी को ही इक्विटी कहते हैं। निवेशक को दस प्रतिशत की इक्विटी देने का अर्थ है कि उन्हें व्यवसाय में दस प्रतिशत का मालिक बनाया गया।
5. न्यूनतम व्यवहार्य उत्पाद (एमवीपी): इससे आशय है कि जब प्रोटोटाइप में जरूरी सुधार के बाद उत्पाद मार्केट में जाने को तैयार हो जाता है तो उसे न्यूनतम व्यवहार्य उत्पाद यानी कि मिनिमम वाएबल प्रोडक्ट कहते हैं।
6. बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप: जब व्यवसाय में किसी भी प्रकार के निवेशक का योगदान होने की बजाए व्यक्ति स्वयं ही सारा निवेश करे तो इस स्थिति को बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप कहा जाता है। हालांकि निवेश की गई राशि किसी से उधार ली गई या बैंक से लिया गया लोन भी हो सकता है।
7. मूल्यांकन: मूल्यांकन यानी कि वैल्युऐशन। इससे आशय है कंपनी की वैल्यू का। अगर कंपनी में दस प्रतिशत की हिस्सेदारी के लिए निवेशक एक करोड दे तो वैल्युऐशन दस करोड़ होगी। यानी कि किसी तय समय पर कोई व्यवसाय कितने रूपए में बिक सकता है।
8. क्रॉउडफंडिंग: इससे आशय है कि उत्पाद बनाने या उसे बाजार में उतारने के लिए जब लोगों से पैसा मांगा जाता है, तो उसे क्रॉउडफंडिंग कहते हैं।
9. बीटूबी व्यवसाय: इसके तहत वह स्टार्टअप आते हैं, जो खुद तो व्यवसाय करते ही हैं साथ ही उनके ग्राहक भी व्यवसायी ही होते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई कार सीट बना रहा है तो उसका ग्राहक भी कार कंपनी ही होगी।
10. बीटूसी व्यवसाय: इसके तहत कंपनी या स्टार्टअप अपने उत्पाद या सर्विस सीधे ग्राहकों को देती है। उदाहरण के तौर पर कोई वस्त्र विक्रेता कंपनी ग्राहकों को सीधे वस्त्र बेंच रही हो।
11. प्री-रेवन्यु: इसका आशय है कि जब कोई स्टार्टअप किसी भी तरह की कोई आमदनी नहीं होती, निवेशक यह अनुमान लगाते हैं कि स्टार्टअप कितनी आमदनी कर सकते है।
12. सकल मुनाफा: इससे आशय उत्पाद की लागत यानी कि कच्चे माल, लेबर व उत्पाद निर्माण की प्रक्रिया और बेचने की कीमत के बीच का अंतर। यही सकल मुनाफा कहलाता है।
13. शुद्ध मुनाफा: इससे आशय उत्पाद की मार्केटिंग, डिस्ट्रिब्यूशन, डिस्कॉउंट आदि का खर्च घटाने के बाद जो लाभ प्राप्त होता है।
14. ओवरहेड चार्ज: गोदाम या कार्यालय का किराया, इंश्योरेंस व कानूनी फीस जैसे खर्चों को इसमें समाहित किया जाता है। इसमें उत्पाद को बनाने या फिर डिलीवरी से जुड़े हुए खर्चों को शामिल नहीं किया जाता।
15. पेटेंट: इसका आशय है किसी भी उत्पाद पर अपने नाम की मुहर लगाना। इसके बाद कोई भी दूसरा व्यक्ति आपकी अनुमति के बिना वैसा ही उत्पाद निर्मित नहीं कर सकता।
16. ट्रेडमार्क: यह किसी भी उत्पाद की विशेष पहचान होती है। इसके बाद कोई दूसरा व्यक्ति इसे कॉपी नहीं कर सकता।
17. कॉपीराइट: यह भी पेटेंट और ट्रेडमार्क जैसा ही होता है लेकिन इसका प्रयोक कॉन्टेंट के लिए ही किया जाता है। उदाहरण के तौर पर किस्से, कहानी, शायरी, किताब या फिर किसी फिल्म, सॉन्ग इत्यादि के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
18. रॉयल्टी: अगर किसी व्यक्ति ने कॉपीराइट या पेटेंट करवाया है और कोई दूसरा उसकी कॉपी करके बेचता है। इस स्थिति में वह व्यक्ति मूल उत्पादक को इसका शुल्क यानी कि रॉयल्टी चुकाएगा।
19. इन्क्यूबेटर्स: यह एक ऐसी संस्था होती है, जो नए स्टार्टअप को उनके व्यवसाय के शुरुआती दौर में मदद करती है।
20. त्वरक (एक्सीलरेटर): यह ऐसी संस्थाएं होती हैं, जो व्यवसाय शुरू होने के बाद उनकी ग्रोथ को बढ़ाने का कार्य करती हैं।
21. एजंल निवेशक: जब किसी स्टार्टअप फाउंडर के परिवारिक सदस्य या फिर दोस्त निवेश करते हैं, तो उन्हें ही एजंल निवेशक कहा जाता है।