किसी भी व्यवसाय को शुरू करना आसान नहीं होता। लेकिन यह भी कहा गया है कि अगर आपमें इतनी हिम्मत है कि आपने व्यवसाय शुरू कर दिया, तो यह भी मान लें कि सफलता मिलनी भी तय है। बात जब हेल्थकेयर की हो, तो यहां यह बात और भी ज्यादा स्पष्ट हो जाती है। अब आपकी प्लानिंग है कि आप भारत में हेल्थेकेयर बिजनेस शुरू करें, तो इसके जरूरी नियम-कायदे जरूर जान लें ताकि आप सुचारू रूप से अपने व्यवसाय का संचालन कर सकें। भारत में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय स्वास्थ्य सेवा उद्योग को विनियमित करने के लिए बतौर प्रहरी कार्य करता है। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय सार्वजनिक स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित तकनीकी ज्ञान का भंडार है। यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का एक संबद्ध संगठन है और विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं का प्रदाता है।
डॉ विकास उपाध्याय बताते हैं कि सबसे पहले तो आपको हेल्थकेयर कंपनी को बतौर प्राइवेट कंपनी रजिस्टर कराना होगा। इसके बाद कंपनी के नाम पर पैन यानी कि स्थायी खाता संख्या के लिए आवेदन करना होगा। साथ ही टैक्स रजिस्ट्रेशन करना होगा, मसलन जीएसटी और सर्विस टैक्स। अगर आपकी कंपनी हेल्थकेयर उत्पादों का भी व्यवसाय करती है, तो कंपनी के लिए निर्धारित टर्नओवर की लिमिट क्रॉस करने के बाद आपको वैट या फिर सीएसटी का रजिस्ट्रेशन करना होगा। हेल्थकेयर इंडस्ट्री का कोई भी व्यवसाय शुरू करने के लिए कुछ जरूरी नियम-कायदे भी बनाए गये हैं, जिनका पालन करना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैं इन नियमों को बनाने वाले संगठनों और उनके कार्यों के बारे में, जो निम्नवत् हैं।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ)
यह देश में दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों, निदान और उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मानक और उपाय निर्धारित करता है। यह नई दवाओं और नैदानिक परीक्षण मानकों के बाजार प्राधिकरण को भी नियंत्रित करता हैं। दवा आयात की निगरानी करता है और उपर्युक्त उत्पादों के निर्माण के लिए लाइसेंस को मंजूरी देता है।
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए)
यह समय-समय पर फार्मास्युटिकल फर्मों के निर्यात और आयात और बाजार हिस्सेदारी के स्थापित दिशानिर्देशों के अनुसार दवाओं को शामिल करने और बाहर करने के माध्यम से मूल्य नियंत्रण के तहत सूची को प्रसारित करता रहता है। इसके अलावा, यह दवाओं की उपलब्धता को लागू करता है और उसकी निगरानी करता है। जिससे दवा मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दों पर संसद को इनपुट प्रदान किया जा सके।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)
परिषद के शासी निकाय की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री करते हैं। वैज्ञानिक और तकनीकी मामलों में, सहायता एक वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड द्वारा प्रदान की जाती है, जिसमें विभिन्न बायोमेडिकल विषयों के प्रख्यात विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई)
डीसीजीआई फार्मास्युटिकल उद्योग में विभिन्न मुद्दों को नियंत्रित करने वाली एक शीर्ष संस्था है। जिनमें से कुछ में उत्पाद अनुमोदन और मानक, नैदानिक परीक्षण, नई दवाओं की शुरूआत, नई दवाओं के लिए आयात लाइसेंस और नए दवा कानून लागू करना शामिल हैं। लाइसेंस की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए, सबसे महत्वपूर्ण लाइसेंस जिसे एक हेल्थकेयर व्यवसायी को प्राप्त करने की आवश्यकता होती है वह एफएसएसएआई लाइसेंस है। यह लाइसेंस भारत में संपूर्ण खाद्य उत्पादों की बिक्री को नियंत्रित करता है। इन सभी में स्वास्थ्य अनुपूरक, जैविक खाद्य पदार्थ, विशेष आहार उपयोग के लिए खाद्य पदार्थ, कार्यात्मक खाद्य पदार्थ, न्यूट्रास्यूटिकल्स आदि शामिल हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवा उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। इसने स्वास्थ्य सेवा कंपनियों के लिए एक खतरे के रूप में नागरिक और आपराधिक दायित्व का भी मार्ग प्रशस्त किया है। अनुपालन का अपूर्ण ज्ञान, विकसित होते अनेक कानून और नियम और समय की कमी स्वास्थ्य देखभाल कंपनियों के लिए अनुपालन को कठिन बना देती है। ऐसे में ध्यान रखना जरूरी है कि बेची जाने वाली सभी दवाएं लाइसेंस के तहत होनी चाहिए। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि कौन सी दवाएं केवल पंजीकृत डॉक्टर द्वारा जारी किए गए पर्चे के प्रस्तुत करने पर ही बेची जा सकती हैं।
ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 में कहा गया है कि यदि आप भारत में स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय शुरू करने के बाद पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों और केमिस्टों को विज्ञापन (किसी भी चीज का प्रचार) भेजने जा रहे हैं, तो आप ऐसा तभी कर सकते हैं, जब आपके दस्तावेजों पर केवल उपयोग के लिए शब्द हों। दस्तावेज के शीर्ष पर पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी या अस्पताल या प्रयोगशाला।
फार्मेसी अधिनियम, 1948 भारत में फार्मेसी के पेशे को नियंत्रित करता है। क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 देश में सभी क्लिनिकल प्रतिष्ठानों के पंजीकरण और विनियमन का प्रावधान करता है। साथ ही नैदानिक प्रतिष्ठानों द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं के न्यूनतम मानक निर्धारित करने की दृष्टि से।
निष्कर्ष: अगर आप भारत में हेल्थकेयर सेक्टर में कोई व्यवसाय शुरू करने जा रहे हैं और चाहते हैं दंड और कानून के उल्लंघन से बचे रहें या किसी ऐसी समस्या न पड़ें, जिसका प्रभाव सीधे तौर पर आपके व्यवसाय को प्रभावित करे। ऐसे में जरूरी है कि आप यहां बताए गए सभी अधिनियमों के तहत नियमों का पालन तो करें ही साथ ही व्यवसाय शुरू करने से पहले संबंधित जगह पर संबंधित विभाग में जाकर अन्य जानकारियां भी जरूर प्राप्त कर लें।