
भारत का लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी उद्योग 2030 तक ₹75,000 करोड़ से अधिक के निवेश को आकर्षित करने के लिए तैयार है। ICRA की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में 150 GWh से अधिक बैटरी सेल निर्माण क्षमता चालू होने की उम्मीद है।
देश में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है, जिसका श्रेय सरकारी प्रोत्साहनों, उपभोक्ता जागरूकता में वृद्धि और नए मॉडल के लॉन्च को जाता है। EV की कुल लागत का 35-40% हिस्सा बैटरी सेल का होता है, इसलिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो और स्थानीय सप्लाई चेन मजबूत हो सके।
फिलहाल, चीन वैश्विक लिथियम-आयन बैटरी बाजार में अग्रणी है और कच्चे माल के प्रोसेसिंग से लेकर निर्माण तक में इसका वर्चस्व है। वर्ष 2024 में बैटरी की कीमतों में लगभग 20% की गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण सप्लाई में वृद्धि रही है। आने वाले वर्षों में वैश्विक बैटरी उत्पादन की दर मांग से अधिक हो सकती है, जिससे भारत में भी कीमतों पर असर पड़ने की संभावना है।
वर्तमान में, भारत में बैटरी सेल आयात पर अत्यधिक निर्भरता बनी हुई है और स्थानीय स्तर पर ज्यादातर बैटरी पैक असेंबली का कार्य हो रहा है। देश में लिथियम-आयन बैटरी सेल की मांग वित्त वर्ष 2025 तक 11-13 GWh तक पहुंचने की उम्मीद है और 2030 तक यह 60-65 GWh तक बढ़ सकती है। ईवी के अलावा, स्टेशनरी अनुप्रयोगों में भी इन बैटरियों की मांग बढ़ने की संभावना है।
हालांकि, मजबूत बैटरी सेल मैन्युफैक्चरिंग उद्योग स्थापित करने में कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं। निवेश पर रिटर्न, टेक्नोलॉजी की विश्वसनीयता और कच्चे माल(raw materials) की सप्लाई से जुड़ी अनिश्चितताएं उद्योग के विकास में बाधा डाल सकती हैं। इसके अलावा, बैटरी रिसाइक्लिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास भी सीमित है। लेकिन, नीतिगत सपोर्ट और निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी के साथ, भारत धीरे-धीरे आयात निर्भरता को कम करने और घरेलू ईवी बैटरी इकोसिस्टम को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।