
दिल्ली परिवहन विभाग द्वारा प्रस्तावित नई इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) नीति ने न केवल ऑटोमोबाइल कंपनियों (OEMs) बल्कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के निवासियों को भी चौंका दिया है। यह नीति कई ऐसे प्रस्ताव लेकर आई है, जो अगर लागू हो जाती हैं, तो व्यवसायों के साथ-साथ उपभोक्ताओं के लिए भी बड़ी परेशानी खड़ी कर सकती हैं।
इस नीति के प्रमुख प्रावधानों में से एक है – सीएनजी ऑटो का चरणबद्ध तरीके से हटाना। नीति के अनुसार, 15 अगस्त 2024 के बाद दिल्ली में कोई भी नया सीएनजी थ्री-व्हीलर पंजीकृत नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा, 10 साल से पुराने सीएनजी ऑटो में इलेक्ट्रिक पावरट्रेन को रेट्रोफिट करना अनिवार्य होगा, जिससे थ्री-व्हीलर बाजार में भारी असुविधा की संभावना जताई जा रही है।
लेकिन जो प्रस्ताव सबसे अधिक चर्चा में है वह है – 15 अगस्त 2025 के बाद दिल्ली में कोई भी पेट्रोल या सीएनजी-चालित दोपहिया वाहन रजिस्टर नहीं किया जाएगा। यह निर्णय बहुत से लोगों को जल्दबाज़ी में लिया गया और अपरिपक्व लगा है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर ईवी की मांग में ठहराव देखा जा रहा है।
डेलॉयट इंडिया (Deloitte India) द्वारा हाल ही में जारी "2025 Global Automotive Consumer Study" रिपोर्ट के अनुसार, बैटरी-चालित इलेक्ट्रिक वाहनों (BEVs) की मांग 2024 में 10% से घटकर 2025 में 8% हो गई है। इससे सवाल उठता है कि क्या दिल्ली की यह नई ईवी नीति समस्याओं का समाधान करेगी या सिर्फ व्यवधान पैदा करेगी?
Deloitte India में पार्टनर और ऑटो सेक्टर लीडर रजत माहाजन ने कहा, “बिलकुल, यह नीति अल्पकालिक रूप से व्यवधानकारी होगी। लेकिन जब भी कोई बड़ा परिवर्तन आता है, तो कुछ न कुछ असुविधाएं होती हैं। चीन ने जब दोपहिया वाहनों में इलेक्ट्रिक परिवर्तन किया, तो मोटरसाइकिलों पर एक झटके में प्रतिबंध लगा दिया गया और फिर प्रोत्साहन दिए गए।”
उन्होंने आगे कहा कि अगर यह नीति लंबे समय तक बनी रहती है, तो अन्य राज्यों में भी इसी तरह की नीतियाँ अपनाई जा सकती हैं, जो भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में एक बड़ा बदलाव ला सकती हैं।
हालाँकि, इलेक्ट्रिक वाहनों की वृद्धि तब तक संभव नहीं है जब तक उसके लिए मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर न हो। ईवी के लिए सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है बैटरी, और इसी के इर्द-गिर्द चार्जिंग, रीसाइक्लिंग और डिस्पोजल की संरचना विकसित करनी होगी।
माहाजन के अनुसार, “अगर आप एक रीसाइकल की गई बैटरी ला सकें, तो उसकी कीमत नई बैटरी के मुकाबले आधी या उससे भी कम हो सकती है। भारत में वाहन स्वामित्व की औसत अवधि 4.5 से 5 साल रह गई है। अगर उतनी अवधि के लिए कोई सस्ती रीसाइकल्ड बैटरी उपलब्ध हो, तो यह एक बेहतरीन बिजनेस मॉडल बन सकता है।”
उन्होंने बताया कि फिलहाल भारत में सभी वर्गों में ईवी की औसत बाजार हिस्सेदारी केवल 2.5% है। लेकिन जैसे ही यह आंकड़ा डबल डिजिट में पहुंचेगा, निवेश और ध्यान इस क्षेत्र में कई गुना बढ़ेगा। यूरोप में बैटरी रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री के 2035 तक $100 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, और भारत में भी इसमें जबरदस्त संभावना है।